इश्वर क गण, कम तथा स्वभाव को जानना पत्यक मनध्य का कतव्या


इश्वर क गण, कम तथा स्वभाव को जानना पत्यक मनध्य का कतव्या को आदि म पचलित हआ। को स्तति, पाथना व उपासना स एसा करना हो सभी मनष्या क हित कतव्या एव उनक निवाह क साधना सभी विधि विधान पस्तक म दिय कालान्तर न हमार ऋषिया न वदा वचित होन सहित सख, कल्याण, म होता ह। जो मनष्य अपन कतव्या का ज्ञान कहा स व कस हो सकता गय ह। इनका करन स मनष्य को पर अनक गन्था को रचना को उन्नति, ज्ञान पाप्ति व आनन्द पाप्ति स का नहीं जानता और उनका सवन ह? इसका उत्तर यह ह कि इसक आत्मा को उन्नति होतो ह। वह जिसस वदाथ अथात वदा क सत्य भो दर हा जाता ह। मनष्य इश्वर स नहीं करता, वह मनष्य वस्ततः लिय मनष्य का ऋषि दयानन्द का कतघ्न नही कहलाता और सन्ध्या अथ जानन म सरलता हो। उपनिषद दर होकर जड पकति व भांतिक अभागा होता ह और अपन अनमोल सत्याथपकाश, ऋग्वदादिभाष्य सहित स्वाध्याय व इतर पचमहायज्ञा एव दशन गन्थ वदा क यथाथ अथ पदाथा को इच्छा कर उन्ह पाप्त जोवन का शाश्वत सख को पाप्ति स भमिका, आयाभिविनय तथा सस्कार का करन का लाभ भी उस पाप्त होता हम मनष्य ह और हमार कछ का जानन म सहायक ह। इन गन्था होकर बद्धि म जडता व अविवको वचित कर जन्म-जन्मान्तर म दःख विधि सहित वदभाष्य का नियमित ह। मनष्य सदकम करता है तो कतव्य ह जिनम हमारा एक पमख को मान्यताआ एव सिद्धान्ता का बनता ह जिसस उस इहलोक व भागता ह। इसोलिय सावधान करन रूप स अध्ययन वा स्वाध्याय करना उसको आत्मा व जीवन को उन्नति कतव्य ह कि हम अपन उत्पत्तिकता, उल्लख हो वदा म परमात्मा न किया परलोक म सख पाप्त न होकर अनक क लिय हम परमात्मा स वद ज्ञान चाहिय। एसा करन स मनष्य को होतो ह और नहीं करता तो उसको जन्मदाता, आत्मा व शरीर का ह। इन गन्था क अध्ययन स इश्वर पकार को हानिया हातो ह। इसक मिला और हमार ऋषिया व विद्वान अविद्या दर हागो तथा ज्ञान वद्धि आत्मा पतित होकर दश व समाज सयक्त करन वाल तथा हमार लिए का स्वरूप व उसक गण, कम व विपरीत इश्वर का जानन व उसको महात्मा न हमार जोवन का होकर उस इश्वर व जीवात्मा क को व्यवस्था स दःख का पाप्त हान योगक्षम वा कल्याण क लिए इस स्वभाव क अध्यता का यथाथ ज्ञान उपासना स मनष्य का परुषाथ को सन्माग पर चलान क लिय हम सत्यस्वरूप सहित उसक गण, कम सहित इश्वर को कम-फल व्यवस्था साष्ट का बनान सहित इसका पालन व विद्या को पाप्ति हो जातो ह। ज्ञान परणा मिलतो ह। वह इश्वर को भाति पचर साहित्य उपलब्ध कराया है। व स्वभाव एव सष्टि क बनान का वा दण्ड व्यवस्था स भी दःख पातो करन वाल परमश्वर को जान आर हा जान पर उस अपना कतव्य भी हो परोपकार एव दोना को सवा का हमार सभी ऋषि मनिया क जोवन व पयोजन भी विदित होगा। इश्वर क ह। अतः सबको ऋषि दयानन्द क उसक पति अपन सभी कतव्या का ज्ञात हो जाता ह। इश्वर सच्चिदानन्द हो अपन जोवन का उद्दश्य समझता काय भी हमार परणा क स्रोत ह। उपकारों का जानन क बाद मनष्य गन्था का स्वाध्याय अनिवाय रूप स उचित रोति स निवहन कर। यह स्वरूप एव सवज्ञ हान स ज्ञान व ह। इसस उस निधना क आशोवाद ऋषिया न हो हम पच-महायज्ञा का स्वय हो इश्वर क पति कतज्ञता का जीवन क बह्मचय आश्रम सहित नियम सभी मनष्यों पर लाग होता ह आनन्द का स्रात ह। इश्वर का मनन, व शभकामनाय पाप्त होतो ह। वह विधान दिया ह जिस करक हम अनभव करता ह और उसक ऋण स गहस्थ आश्रम म अवश्यमव करना परन्त हम दखत ह कि ससार क चिन्तन, स्तति, पाथना व उपासना सवपिय बन जाता ह। इसस उसका अपन कतव्या को पति करत हए उऋण हान क लिय उसको स्तति, चाहिय अन्यथा बहत दर हा चकगों अधिकाश लोग इश्वर क सत्य आदि स मनष्य क गण, कम व मन व आत्मा आादित होकर उसक कम-फल व कम-बन्धना म फसन पाथना व उपासना का अपन जोवन और मनष्य का शभ कमा का सचय स्वरूप सहित गण, कम व स्वभाव स्वभाव म भो सधार व उन्नति हातो सख व कल्याण म वद्धि करतो ह। व उलझन स बचत ह। इसक का अग बनाता ह। इश्वर को न्यन हान स उस परलाक म हानि व को भलो-भाति नहीं जानत। इसका ह। इस उन्नति स वह धम, अथ, अतः सभी मनष्या का सष्टि का परिणाम स हम दःखा व आत्मा का उपासना क लिय भी ऋषि दयानन्द दःख भागन पड सकत ह। कारण मख्यतः अविद्या, मत- काम व माक्ष का पाप्त हात ह। एसा बनान, पालन करन वाल तथा पलय हान वालो अनक पकार को हानिया न एक पस्तक पचमहायज्ञ-विधि मनमोहन कमार आय मतान्तर एव ससार क नास्तिक व न करन स मनष्य को आत्मा का करन वालो शक्ति व सत्ता इश्वर का सभी बचत ह। पश्न यह ह कि इश्वर लिखो ह जिसक अन्तगत सन्ध्या का पता: 196 चक्खवाला-2 साम्यवादी लोग ह। वदिक धम इश्वर पतन हाता ह और वह गाणिक दष्टि जानन व उसक पति अपन कतव्या क सत्यस्वरूप, उसक गण, कम व पथम महायज्ञ क रूप म पस्तत दहरादून-248001 स आविभत धम ह। यह धम सष्टि स इश्वर स दर हान क कारण इश्वर का अवश्य हो पालन करना चाहिय। स्वभाव तथा मनष्य को अपन किया गया ह तथा इस करन क फोन: 9412985121


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